Saturday, April 2, 2011

क्या हुआ प्रो सहगल तेरा वादा:धज्जिया उड़ गयी

छात्रपति साहू जी महाराज के कुलपति प्रो हर्ष कुमार सहगल ने विश्वविद्यालय की परीक्षा शुरू होने से पहले नक़ल पर शिकंजा कसने का प्रयास किया जिसके लिए उन्होंने अनेक नए नियम बना डाले.जिसका नतीजा उलटा निकला.प्रो सहगल विश्वविद्यालय की परीक्षायो में नक़ल को रोकने में पूर्णता असफल रहे.हाँ प्रो सहगल के नक़ल रोकने के नियमो ने एक काम जरूर किया है वो यह है की पिछले वर्षो तक व्यक्तिगत और संस्थागत के परीक्षार्थियों के बीच जो नक़ल को लेकर भेद भाव था वो ख़त्म हो गया है.इस वर्ष हो रही विश्वविद्यालय की परीक्षा में संस्थागत और व्यक्तिगत दोनों प्रकार के परीक्षार्थी नक़ल कर पा रहे है.जिसके लिए छात्रपति साहू जी महाराज के कुलपति को व्यक्तिगत परीक्षार्थियों की तरफ से कोटि कोटि धन्यबाद.छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय की परीक्षा २५ मार्च से प्रारम्भ हो चुकी है .इस वर्ष छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय की संस्थागत और व्यक्तिगत परीक्षार्थियों की परीक्षा साथ साथ हो रही है.व्यक्तिगत परीक्षा के सेंटर इस विश्वविद्यालय के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय की काफी बड़ी संख्या को बनाया गया है जिससे इन स्ववित्तपोषित महाविध्यलायो के प्रबंधको की बल्ले बल्ले हो गयी है.अब इस वर्ष से इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको को डबल मुनाफा होने लगा है.इस वर्ष अधिकांश स्ववित्त पोषित महाविद्यालय के प्रबंधक परीक्षार्थियों से नक़ल कराने के लिए मन माना धन बसूल कर रहे है .ese महाविद्यालय व्यक्तिगत छात्रो से नक़ल के नाम पर छात्रो से ५०० से १००० रुपये तक वसूल कर रहे है.अगर इस विश्वविद्यालय के स्ववित्त पोषित महाविद्यालय की बात की जाये तो ये महाविद्यालय में वर्षभर ना तो छात्र दिखाते है और ना ही टीचर ये दोनों केवल परीक्षा के समय ही दिखाते है.टीचर की अगर बात करे तो ये वो टीचर होते है जो ठीक प्रकार से अपना नाम तक नहीं लिख पाते कुछ यही स्थिति छात्रो की भी होती है.अब आप कहेगे एसा कैसे हो सकता है?चलो इस बात से भी आप को बाकिफ कराते है.परीक्षा के समय स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में जो आप टीचर देखते है ये टीचर केवल परीक्षा के समय ही बुलाये जाते है.ये क्षेत्रीय लोग होते है जो छात्रो पर दबाब बनाने के लिए बुलाये जाते है जो छात्रो को काबू कर सके,बस इस कार्य के लिए इन लोगो को परीक्षा के समय ही बुलाया जाता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने महाविद्यालय में अध्यापन कार्य करने के लिए कुछ अहिर्ताये निर्धारित की है वो ये है की महाविद्यालय में अध्यापन कार्य वो ही व्यक्ति कर सकते है एम् फिल ,नेट या पी -एच. दी कर राखी हो.स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में इन मानको के टीचर केवल कागजो पर ही मिलते है.वास्तविक रूप में नहीं .वास्तविकता यह है की अधिकांश स्ववित्तपोषित महाविद्यालय का पदाई से दूर दूर तक किसी प्रकार का कोई वास्ता नहीं रहता है.अगर इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको का वास्ता है तो वो है रुपया .हकीकत यह है इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालय की हालत प्राथमिक विद्यालय से भी गिरी हुयी है कम से कम प्राथमिक विद्यालय में छात्र और टीचर तब भी दिखाई देते है,पर इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में तो कुछ भी नहीं होता है.इन स्ववित्तपोषित महाविद्यालय में जो भी होता है वो सब होता है परीक्षा के समय.ये स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको ने उच्च शिक्षा को व्यवसाय बना रखा है.ये छात्रो से मनमानी फीस वसूल करते है और पदाई तथा पुस्तकालय के नाम पर के नाम पर आउट ऑफ़ कोर्स की किताबे होती है या फिर किताबे होती ही नहीं है और टीचर के नाम पर पर स्नातक या परास्नातक के डीग्री धारक या फिर कुछ भी नहीं.वास्तव में इस विश्वविद्यालय के अधिकाश स्ववित्तपोषित महाविद्यालय दबंग लोगो के है जो नक़ल के दम पर ही चल रहे है जिसमे विश्वविद्यालय के अधिकांश karmchaari sahyog कर रहे है.

Wednesday, March 30, 2011

कानपुर विश्वविद्यालय:उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार का एक अच्छा उदाहरण

दिनांक २५ मार्च से कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रारंभ हुयी जिसमे पहला पेपर कला स्नातक संकाय की तीनो वर्षो में समाजशास्त्र का था।परीक्षा शुरू होने से पहले कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो- सहगल ने परीक्षा में नक़ल रोकने के लिए अनेक नियम बनाये जिनका सीधा सम्बन्ध छात्र,अध्यापक और प्रिंसिपल तथा प्रबंधक से है। जिनका पालन परीक्षा के समय होना है यदि कॉलेज में सामूहिक नक़ल पकड़ी जाती है या छात्र नक़ल करते हुए पकड़ा जता है तो उपरोक्त सभी व्यक्ति अर्थ दंड के भागीदार होगे जिससे नक़ल विहीन परीक्षा संपन्न हो सके.पर परीक्षा शुरू होने के पहले दिन से ही समझ में आने लगा की ये सारे नियम व्यर्थ के बने हुए है .असल में परीक्षा में इन नियमो से कोई लेना देना नहीं है ।कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा शुरू होते ही कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा की हकीकत खुल के सामने आने लगी.इस सत्र में संस्थागत और व्यतिगत दोनों प्रकार छात्रो की परीक्षाये साथ साथ हो रही है व्यक्तिगत छात्रो की परिक्षाए स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में भी परीक्षा सेंटर बनाये गए है जबकि पिछले सत्र में संस्थागत और व्यक्तिगत छात्रो की परीक्षाये अलग अलग समय पर हुई थी .इस वर्ष कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा में धांधली और भ्रष्टाचार अधिक देखने को मिल रहा है.पिछली साल जिन वित्तविहीन महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा करवाई थी इस साल ये महाविद्यालय भी नक़ल की दौड़ में शामिल हो गए है .अब आप इसका कारण जानना चाहेगे तो इसका कारण यह की इस साल वित्तविहीन कॉलेज की छात्र संख्या में आई गिरावट है क्योंकि आज हर माँ बाप यह चाहते है कि उसका बच्चा अच्छे अंको से पास हो कोई भी छात्र या उसके माँ बाप ये नहीं चाहते कि उसका बच्चा फेल हो और इस सब बातो में स्ववित्तपोषित महाविद्यालय अहम् भूमिका निभाते है तथा बहुत से वित्तविहीन कॉलेज नक़ल विहीन परीक्षा कराते थे जिसका नुकसान इन कॉलेज को इस बार भुगतना पड़ा .नतीजा ये निकला कि वित्तविहीन कॉलेज कि काफी सीट खाली बनी रही और स्ववित्तपोषित कॉलेज कि लगभग सभी सीट समय से पहले ही फुल हो गयी है.कानपुर विश्वविद्यालय कि चल रही परीक्षायो में इस साल दोनों प्रकार के महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा ना कराने कि कसम खा रखी है .इस सत्र में कानपुर कि परीक्षायो में जम के नक़ल करायी जा रही है.किसी कॉलेज में बोल के नक़ल कराई जा रही है तो कही पर छात्र किताब रख कर नक़ल कर रहे है .हद तो यहाँ तक हो गयी गलत विषय के प्रश्न पत्र तक छात्रो में बांटे गए जिसके कारण ३१ मार्च का कला स्नातक प्रथम वर्ष का राजनीती विज्ञानं का पेपर लीक होने की बजह से रद्द हो गया.भ्रष्टाचार का दूसरा उदाहरण देखिये कानपुर विश्विद्यालय ने इस साल नक़ल रोकने के लिए जो सचल दल गठित किये है उन में से बहुत से लोग वे शामिल है जिनका खुद का महाविद्यालय है या फिर इनके रिश्तेदार महाविद्यालय चला रहे है.शायद इन लोगो ने ले दे के सचल दल में अपना नाम पडवा लिया है .अब ज़रा इस सचल दल कि हकीकत जाने कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा गठित सचल दल के अधिकांश व्यक्ति स्ववित्तपोषित महाविद्यालय के प्रबंधको से मिले हुए है जो कॉलेज में आने से पहले ही फोन द्वारा अपने आने कि सूचना कॉलेज के प्रबंधक को पहले से ही दे देते है जिससे सचल दल के आने से पहले ही कॉलेज से नक़ल को साफ़ कर दिया जाता है.कानपुर विश्वविद्यालय से सम्बध्द स्ववित्त पोषित महाविद्यालय कि हालत बहुत भी खराब है पहली बात तो यह ही इन कॉलेज के मानक केवल कागजो में ही सीमित होते है .कॉलेज कि वास्तविक हकीकत कुछ और ही होती ही.कॉलेज कि वास्तविक तस्वीर यह होती हैं कि साल भर इन स्ववित्त पोषित कॉलेज में ना तो टीचर होते हैऔर ना ही छात्र होते ही ये दोनों ही केवल परीक्षा के समय ही देखे जाते ही.हां इसमें भी एक और घोटाला भी है वो यह है कि विश्वविद्यालय के मानक के अनुरूप टीचर केवल कॉलेज कागज में होते है बाकि के परीक्षा कराने के लिए टीचर माफ़ करना इनको टीचर तो नहीं कहा जा सकता अगर इनको दैनिक मजदूर कहे तो , तो शायद उचित रहेगा,इन को बाहार से बुलाबाया जाता है जो स्ववित्तपोषित कॉलेज में परीक्षा में नक़ल की व्यवस्था संभालते है।स्ववित्तपोषित कॉलेज के प्रबंधक के आदेश पर परीक्षा में नक़ल कराने में ये लोग ही अहम भूमिका निभाते है.ये दैनिक मजदूर ही स्ववित्त पोषित कॉलेज के प्रबंधको आदेश पर नक़ल कराते है.बहुत से स्ववित्तपोषित महाविद्यालय इस प्रकार से नक़ल कराते है कि परीक्षा के अंत में ३० मिनट पहले से नक़ल करवाना शुरू करते है और परीक्षा ख़त्म होने के १५ मिनट बाद तक नक़ल कराते रहते है यानी परीक्षा १० बजे ख़त्म होनी है तो नक़ल ९.३० बजे से शुरू होती है और १०.१५ बजे तक चलती रहती है.१०.१५ पर नकलचियो कॉपी जमा कराई जाती है.हद तो तब हो गयी जब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी कानपुर विश्वविद्यालय की नक़ल विहीन परीक्षा कराने का झूटा दावा जनता के सामने पेश करने लगी.कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा की वास्तिविक तस्वीर तो ये है.

कानपुर विश्वविद्यालय की सत्र २०११ की परीक्षा की हकीक़त

दिनांक २५ मार्च से कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रारंभ हुयी जिसमे पहला पेपर कला स्नातक संकाय की तीनो वर्षो में समाजशास्त्र का था.परीक्षा शुरू होने से पहले कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो- सहगल ने परीक्षा में नक़ल रोकने के लिए अनेक नियम बनाये जिनका सीधा सम्बन्ध छात्र,अध्यापक और प्रिंसिपल तथा प्रबंधक से है. जिनका पालन परीक्षा के समय होना था यदि कॉलेज में सामूहिक नक़ल पकड़ी जाती है तो उपरोक्त सभी व्यक्ति अर्थ दंड के भागीदार होगे जिससे नक़ल विहीन परीक्षा संपन्न हो सके पर परीक्षा शुरू के पहले दिन से ही समझ में आने लगा की ये सरे नियम व्यर्थ के बने हुए है .असल में परीक्षा में परीक्षा का इन नियमो से कोई लेना देना नहीं था.कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा शुरू होते ही कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा की हकीकत खुल के सामने आने लगी.इस सत्र में संस्थागत और व्यतिगत दोनों प्रकार छात्रो की परीक्षाये साथ साथ हो रही है व्यक्तिगत छात्रो की परिक्षाए स्ववित्त पोषित महाविद्यालय में भी परीक्षा सेंटर बनाये गए है जबकिपिछले सत्र में संस्थागत और व्यक्तिगत छात्रो की परीक्षाये अलग अलग समय पर हुई थी .इस वर्ष कानपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा धांधली और भ्रष्टाचार अधिक देखने को मिल रहा है.पिछली साल जिन वित्तविहीन महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा करवाई थी इस साल इसे महाविद्यालय भी नक़ल की दौड़ में शामिल हो गए है .अब आप इसका कारण जानना चाहेगे तो इसका कारण यह की इस साल वित्तविहीन कॉलेज की छात्र संख्या में आई गिरावट है क्योंकि आज हर माँ बाप यह चाहते है कि उसका बच्चा अच्छे अंको से पास हो कोई भी छात्र या उसके माँ बाप ये नहीं चाहते कि उसका बच्चा फेल हो और इस सब बातो में स्ववित्त पोषित महाविद्यालय अहम् भूमिका निभाते है तथा बहुत से वित्तविहीन कॉलेज नक़ल विहीन परीक्षा कराते थे जिसका नुकसान इन कॉलेज को इस बार भुगतना पड़ा .नतीजा ये निकला कि वित्तविहीन कॉलेज कि काफी सीट खाली बनी रही और स्ववित्तपोषित कॉलेज कि लगभग सभी सीट समय से पहले ही फुल हो गयी है.कानपुर विश्वविद्यालय कि चल रही परीक्षायो में इस साल दोनों प्रकार के महाविद्यालय ने नक़ल विहीन परीक्षा ना कराने कि कसम खा रखी है .इस सत्र में कानपुर कि परीक्षायो में जम के नक़ल करायी जा रही है.किसी कॉलेज में बोल के नक़ल कराई जा रही है तो कही पर छात्र किताब रख कर नक़ल कर रहे है .हद तो यहाँ तक हो गयी गलत विषय के प्रश्न पत्र तक छात्रो में बांटे गए.भ्रष्टाचार का दूसरा उदाहरण देखिये कानपुर ने इस साल नक़ल रोकने के लिए जो सचल दल गठित किये है उन में से बहुत से लोग इसे है जिनका खुद का महाविद्यालय है या फिर इनके रिश्तेदार महाविद्यालय चला रहे है.शयद इसे लोगो ने ले दे के सचल दल में अपना नाम पडवा लिया है .अब ज़रा इस सचल दल कि हकीकत जाने कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा गादित सचल दल के अधिकांश व्यक्ति महाविद्यालय के प्रबंधको से मिले हुए है जो कॉलेज में आने से पहले ही फोन द्वारा अपने आने कि सूचना कॉलेज के प्रबंधक को पहले से ही दे देते है जिससे सचल दल के आने से पहले ही कॉलेज से नक़ल को साफ़ कर दिया जाता है.कानपुर विश्वविद्यालय से संबध स्ववित्त पोषित महाविद्यालय कि हालत तो और भी खराब हाइ पहली बात तो यह ही कि इn कॉलेज के मानक केवल कागजो में ही सीमित होते ही.कॉलेज कि वास्तविक हकीकत कुछ और ही होती ही.कॉलेज कि वास्तविक तस्वीर यह होती हैं कि साल भर इन स्ववित्त पोषित कॉलेज में ना तो टीचर होते हैऔर ना ही छात्र होते ही ये दोनों ही केवल परीक्षा के समय ही देखे जाते ही.हां इसमें भी एक ghotala है vo यह है कि विश्वविद्यालय के मानक के apurup टीचर केवल कॉलेज के kagaj में hota है baki के परीक्षा karane के लिए टीचर maf karna inko टीचर तो नहीं kahege agar inko dainik majdoor kahe तो shyaad uchit rahega, को bahar से bulwaya jataa है जो कॉलेज में परीक्षा कराते है.कॉलेज के प्रबंधक के aadesh पर parikshaa में नक़ल कराने में sahi bhoomika ये लोग ही निभाते है.ये dainik majdoor ही कॉलेज के प्रबंधको के aadesh पर नक़ल कराते है.बहुत से स्ववित्तपोषित महाविद्यालय इस प्रकार से नक़ल कराते है कि परीक्षा के aant में ३० minat पहले से नक़ल karaanaa शुरू करते है और परीक्षा khatm होने के १५ minat baad तक नक़ल कराते rhate है yaani परीक्षा १० baje khatm honi है तो नक़ल ९.३० baje से shooru होती है और १०.१५ minut तक chalti rahti है.१०.१५ पर nakalchiyo से copy li जाती है.ये sach है कानपुर विश्वविद्यालय कि आज कि परीक्षा का.

Saturday, July 31, 2010

उ.प.में सेल्फ fianance स्कूल और college

आज मै आपको सेल्फ finance स्कूल और कॉलेज की हालत तथा सासन की सहभागिता को पॉइंट तो पॉइंट बताना चाहता हु..........१-सन १९९२ जब कल्याण सिंह की सरकार थी तब उत्तर प्रदेश में नक़ल अध्यादेश लागु किया गया था तब u.p.में highschool का रिजल्ट १४% आया था। २-अगर हम इसके पहले की बात करे तो highschool और इंटर का रिजल्ट काफी अच्छा रहा था। ३-सन १९९४ tak नक़ल अध्यादेश काफी सख्ती से लागु रहा अगर हम सन १९९२ से लेकर १९९४ तक के u.p। बोर्ड के आंकड़ो का अध्यन करे तो इसमें काफी गिराबत देखने को मिलती है ४-१९९२ से पहले से तथा १९९४ के बाद के आंकड़ो का अध्ययन करे तो ये आंकडे काफी बड़े हुए मिलेगे। ३-जरा सोचो इसका कारण क्या है चलो मै आपको इसका कारण बताता हु इन बड़े हुए आंकड़ो का केवल एक ही मतलब है शासन की राजनीती ५- जो teacher पहले पढाते थे वो ही teacher अब पढाते है बल्कि अब तो काफी इसे teacher पढाने लगे है जिन्हें कुछ भी नहीं आता फिर भी रिजल्ट में badotrari हुई है इसका कारण क्या है क्या १९९२ से लेकर १९९४ तक teacher ने पदाया नहीं है क्या .एसा नहीं है ये सब वोट की राजनीती और दिन प्रति दिन खुलते जा रहे सेल्फ finance स्कूल और कॉलेज का खेल है जो छात्रो से मनमानी फीस बसुलते है और जम के नक़ल कराते है शासन इन सब में मोअन बन कर स्वीकृति देता रहता है.

Friday, July 23, 2010

कैसे चलाये जाते है सेल्फ finace स्कूल और college

सेल्फ finace स्कूल और कॉलेज को शिक्षा माफियाओ ने एक धंधा बना लिया है .सेल्फ finace स्कूल में जो juniar तक का होता है उस स्कूल में अध्यापक highscool या इंटर पास रखे जाते है.जिनको वेतन के नाम पर ५००-८०० रूपये प्रति माह प्रदान किये जाते है .इन अध्यापको को पुरे साल में ६मह से ८ तक का वेतन दिया जाता है जबकि छात्रो से आच्छी खासी फीस वसूल की जाती है .उत्तर प्रदेश में सेल्फ finace की हालत तो और भी ख़राब है .यहाँ के ९८% स्कूल और कुलेगे फर्जी कागजो पर चल रहे है .इस सम्बन्ध में साशन सब कुछ जनता है पर कुछ करता नहीं क्योकि इसका सबसे बड़ा कारन यह है की इन शिक्षा माफियाओ की पहुच बहु लम्बी होती है.इन कॉलेज के menagment की पहुच सासन लेबल पर होती है .ये लोग राजनितिक पार्टियो का पैसे और फर्जी वोट डलवाने में अहम् भूमिका अदा करते है.

Wednesday, July 14, 2010

सेल्फ फिनस कॉलेज इन india

भारत के सेल्फ finace कॉलेज की हालत बहुत ही ख़राब है .शासन और univesity लगातार सेल्फ finace कॉलेज को मान्यता देता जा रहा है पर शासन का कोई ध्यान सेल्फ finace कॉलेज की हालत की तरफ नहीं है .सेल्फ finace कॉलेज में अध्यापक के नाम पर b.या M.ए किये हुए अध्यापक होते है जो अच्छी तरह से अध्यापन कार्य को नहीं कर पाते है exam के समय ये अध्यापक जम के छात्रो को नक़ल करते है.इन कॉलेज में university में adhyapk का अनुमोदन तो होता है पर अध्यापक शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं होता इसकी बजह यह होती है की इन अध्यापको के कागजो को खरीद लिया जाता है और उनको साल के हिसाब से पैसा दे दिया जाता है .एक साल का पैसा इन अध्यापको को बीस हजार से पच्चीस हजार तक दिया जाता है अगर ये अध्यापक कॉलेज में padate है तो इन अध्यापको प्रतेक महीने 8 हजार से 12 हजार तक का भुगतान कॉलेज को करना पड़ता है बाकि b.ए. या M.ए. के अध्यापक ५०० से १००० तक asani से mil jaate hai

सेल्फ finace कॉलेज इन india

भारत में सेल्फ finace कॉलेज की संख्या दिन प्रति दिन बदती ही जा रही है .ये चिंता का विषय नहीं है अपितु चिंता का विषय ये है की ये सेल्फ finace कॉलेज विना मानक पुरे किये हुए शिक्षा का व्यापार कर रहे है .भारत में बहुत ही कम कॉलेज इसे होगे जिनका मानक पूरा हो .ये सेल्फ finace कॉलेज शिक्षा का जम के ब्यापार कर रहे है.कानपूर university और बुंदेलखंड university से सम्बद कॉलेज की हालत तो बहुत की ख़राब है .ये कॉलेज शिक्षा के नाम पर जम के छात्रो से धन की उगाही करते है .इन कॉलेज में अनुमोदित shikhhako kena